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chawal ki kheti

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

धान की बेहतरीन पैदावार के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिश्रित करनी है। आज कल देश के विभिन्न क्षेत्रों में धान की रोपाई की वजह खेत पानी से डूबे हुए नजर आ रहे हैं। किसान भाई यदि रोपाई के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें तो उन्हें धान की अधिक और अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार मिल सकती है। अमूमन धान की रोपाई जून के दूसरे-तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे-चौथे सप्ताह के मध्य की जाती है। रोपाई के लिए पंक्तियों के मध्य का फासला 20 सेंटीमीटर और पौध की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक स्थान पर दो से तीन पौधे रोपने चाहिए। धान की फसल के लिए तापमान 20 डिग्री से 37 डिग्री के मध्य रहना चाहिए। इसके लिए दोमट मिट्टी काफी बेहतर मानी जाती है। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को तैयार करना चाहिए। साथ ही, खेत की सुद्रण मेड़बंदी करनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी ज्यादा समय तक संचित रह सके।

धान शोधन कराकर खेत में बीज डालें

धान की बुवाई के लिए 40 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के अनुसार बिजाई करनी चाहिए। साथ ही, एक हेक्टेयर रोपाई करने के लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। हालांकि, इससे पहले बीज का शोधन करना आवश्यक होता है। ये भी पढ़े: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

खाद और उवर्रकों का इस्तेमाल किया जाता है

धान की बेहतरीन उपज के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिलाते हैं। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं।

बेहतर सिंचाई प्रबंधन किस प्रकार की जाए

धान की फसल को सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। रोपाई के उपरांत 8 से 10 दिनों तक खेत में पानी का बना रहना आवश्यक है। कड़ी धूप होने पर खेत से पानी निकाल देना चाहिए। जिससे कि पौध में गलन न हो, सिंचाई दोपहर के समय करनी चाहिए, जिससे रातभर में खेत पानी सोख सके।

कीट नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

धान की फसल में कीट नियंत्रण के लिए जुताई, मेंड़ों की छंटाई और घास आदि की साफ सफाई करनी चाहिए। फसल को खरपतवारों से सुरक्षित रखना चाहिए। 10 दिन की समयावधि पर पौध पर कीटनाशक और फंफूदीनाशक का ध्यान से छिड़काव करना चाहिए।
जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की 70 प्रतिशत आबादी खेती किसानी पर ही निर्भर रहती है। कोरोना जैसी महामारी में भी केवल कृषि क्षेत्र ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। भारत में कृषि को देश की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। भारत पहले से ही बहुत सारी फसलों का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। इन फसलों के अंतर्गत मक्का, दलहन, तिलहन, चाय, कॉफी, कपास, गेहूं, धान, गन्ना, बाजरा आदि शम्मिलित हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत की भूमि कृषि हेतु अत्यधिक बेहतरीन व उपजाऊ होती है।


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भारत में प्रत्येक फसल उत्पादन हेतु विशेष जलवायु एवं मृदा उपलब्ध है। जैसा कि हम जानते ही हैं, कि फसल रबी, खरीफ, जायद इन तीन सीजन में की जाती है, इन सीजनों के अंतर्गत विभिन्न फसलों का उत्पादन किया जाता है। भारत की मृदा से उत्पन्न अन्न का स्वाद विदेशी लोगों को भी बहुत भाता है। आंकड़ों के अनुसार भारत में बाजरा, मक्का, दलहन, तिलहन, कपास, धान, गेहूं से लेकर गन्ना, चाय, कॉफी का उत्पादन विशेष तौर पर किया जाता है, परंतु इन फसलों में से धान की फसल का उत्पादन भारत के सर्वाधिक रकबे में उत्पादित की जाती है।

कौन कौन से राज्यों में हो रही है, धान की खेती

हालाँकि धान एक खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल है। साथ ही, देश की आहार श्रृंखला के अंतर्गत धान सर्वप्रथम स्थान पर आता है। भारत के धान या चावल की खपत देश में ही नहीं विदेशों में भी भारतीय चावल की बेहद मांग है। एशिया के अतिरिक्त विभिन्न देशों में प्रतिदिन चावल को आहार के रूप में खाया जाता है। यही कारण है, कि किसान निर्धारित सीजन के अतिरिक्त भी विभिन्न राज्यों में बारह महीने धान का उत्पादन करते हैं। अगर हम धान का उत्पादन करने वाले कुछ प्रमुख राज्यों के बारे में बात करें, तो पंजाब, हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश में धान का उत्पादन अच्छे खासे पैमाने पर किया जाता है।

धान की खेती किस प्रकार की जाती है

चावल केवल भारत के साथ-साथ विभिन्न देशों की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। धान की फसल के लिए सबसे जरूरी बात है, इसको जलभराव अथवा ज्यादा बरसात वाले क्षेत्र धान के उत्पादन हेतु बेहतर साबित होते हैं। इसकी वजह यह है, कि धान का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु बहुत ज्यादा जल आपूर्ति की जरूरत होती है। विश्वभर में धान की पैदावार के मामले में चीन पहले स्थान पर है, इसके उपरांत भारत दूसरे स्थान पर धान उत्पादक के रूप में बनकर उभरा है। चावल की खेती करते समय 20 डिग्री से 24 डिग्री सेल्सियत तापमान एवं 100 सेमी0 से ज्यादा बारिश एवं जलोढ़ मिट्टी बहुत अच्छी होती है। भारत में मानसून के दौरान धान की फसल की बुवाई की जाती है, जिसके उपरांत धान की फसल अक्टूबर माह में पकने के उपरांत कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

इन राज्यों में धान का उत्पादन 3 बार होता है

देश के साथ अन्य देशों में भी धान की काफी खपत होती है, इसी वजह से धान की फसल कुछ राज्यों के अंदर वर्षभर में 3 बार उत्पादित की जाती है। इन राज्यों के अंतर्गत ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं असम प्रथम स्थान पर आते हैं, जो धान के उत्पादन हेतु प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य हैं। इन राज्यों में कृषि रबी, खरीफ अथवा जायद के अनुरूप नहीं बल्कि ऑस, अमन व बोरो अनुरूप वर्ष में तीन बार धान की फसल का उत्पादन किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन से क्या हानि हो सकती है

धान एक प्रमुख नकदी फसल तो है, परंतु ग्लोबल वार्मिंग एवं मौसमिक बदलाव के कारण से फिलहाल धान के उत्पादन में बेहद हानि हुई है। वर्ष 2022 भी धान के किसानों हेतु अत्यंत चिंताजनक रहा है। देरी से हुए मानसून की वजह से धान की रोपाई ही नहीं हो पाई है, बहुत सारे किसानों द्वारा धान की रोपाई की जा चुकी थी। परंतु अक्टूबर माह में कटाई के दौरान बरसात की वजह से आधे से ज्यादा धान नष्ट हो गया, इसलिए वर्तमान में चावल के उत्पादन की जगह पर्यावरण एवं जलवायु के अनुरूप फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाता है।

धान की फसल के लिए योजनाएं एवं शोध

प्रत्येक खरीफ सीजन के दौरान समय से पूर्व धान का उत्पादन करने वाले किसानों हेतु बहुत सारी योजनाएं जारी की जाती हैं। साथ ही, कृषि के व्यय का भार प्रत्यक्ष रूप से किसानों को प्रभावित न कर सके। विभिन्न राज्य सरकारें न्यूनतम दरों पर चावल की उन्नत गुणवत्ता वाले बीज प्रदान करती हैं। धान की सिंचाई से लेकर कीटनाशक व उर्वरकों हेतु अनुदान दिया जाता है। धान की खेती के लिए मशीनीकरण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही, धान की फसल को मौसमिक प्रभाव से संरक्षण उपलब्ध कराने हेतु फसल बीमा योजना के अंतर्गत शम्मिलित किया गया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हाइब्रिड चावल बीज उत्पादन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आदि भी चावल का उत्पादन करने वाले कृषकों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता मुहैय्या कराती है। चावल के सबसे बड़े शोधकर्ता के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, मनीला (फिलीपींस) एवं भारत में राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, कटक (उड़ीसा) पर कार्य कर रहे हैं, जो किसानों को धान की वैज्ञानिक कृषि करने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं।
काले चावल की खेती से किसान बंपर कमाई कर सकते हैं, इतने रुपये किलो बिकता है काला चावल।

काले चावल की खेती से किसान बंपर कमाई कर सकते हैं, इतने रुपये किलो बिकता है काला चावल।

ब्लैक राइस एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट्स है। इसके अंदर एंटी-कैंसर एजेंट मौजूद रहते हैं। इसके अतिरिक्त भी ब्लैक राइस के अंदर आयरन, फाइबर एवं प्रोटीन प्रचूर मात्रा में पाई जाती है। केरल में जून के प्रथम सप्ताह के भीतर मानसून का आगमन हो जाएगा। इसके उपरांत किसान धान की खेती में जुट जाएंगे। हालांकि, विभिन्न राज्यों में किसानों ने धान की नर्सरी को तैयार करना चालू कर दिया है। समस्त राज्यों में किसान भिन्न-भिन्न किस्म के धान की नर्सरी को तैयार कर रहे हैं। यदि किसान भाई को कम खर्चा में ज्यादा आमदनी करनी है, तो ब्लैक राइस की खेती कर सकते हैं। ब्लैक राइस को काला चावल अथवा काला धान के नाम से भी लोग जानते हैं। इस चावल का भाव बासमती से भी बहुत अधिक होता है। अगर किसान भाई एक हेक्टेयर में काले धान की खेती करते हैं, तो लाखों रुपये की आमदनी होगी। वैसे भी आजकल बाजार में काले चावल की मांग में वृद्धि हुई है।

काले चावल में एंटी-कैंसर एजेंट मौजूद रहते हैं

काला चावल एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट्स है। इसमें एंटी-कैंसर एजेंट मौजूद होते हैं। इसके अतिरिक्त ब्लैक राइस में प्रोटीन, आयरन और फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। अब ऐसी स्थिति में यदि आप काले चावल का सेवन करते हैं, तो अंदर से फिट और तंदरुस्त रहेंगे। इसकी खेती सबसे ज्यादा नॉर्थ ईस्ट में होती है। परंतु, अब महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश समेत बाकी राज्यों में भी किसान इसका उत्पादन कर रहे हैं। विशेष बात यह है, कि काले चावल को पकाने के उपरांत इसका रंग परिवर्तित हो जाता है। इस वजह से इसको नीला भात भी कहा जाता है। ये भी देखें: इस राज्य सरकार ने की घोषणा, अब धान की खेती करने वालों को मिलेंगे 30 हजार रुपये

काले चावल की बाली लंबी-लंबी होती हैं

काले चावल की खेती की शुरुआत सर्वप्रथम चीन में हुई थी। इसके पश्चात यह भारत में पहुंचा। भारत के अंदर सर्वप्रथम इसकी खेती की शुरुआत मणिपुर और असम में की गई थी। इसकी खेती भी सामान्य धान की भांति ही की जाती है। काले चावल की फसल 100 से 110 दिन के समयांतराल में पक कर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। इसके पौधे की लंबाई समान्य धान की भांति ही होती है। परंतु, इसकी बाली के दाने लंबे-लंबे होते हैं। यही कारण है, कि काले चावल की लंबाई अधिक होती है।

किसान काले चावल की खेती से अच्छी आय कर रहे हैं

यदि कृषक काले चावल की खेती करना शुरू करते हैं, तो उनको बेहतरीन आय हो सकती है। सामान्य तौर पर चावल की कीमत की शुरुआत 30 रुपये प्रति किलो से 150 रुपये प्रति किलो तक जाती है। परंतु, काले चावल की कीमत की शुरुआत ही 250 रुपये प्रति किलो से होती है। इसका अधिकम मूल्य 500 रुपये किलो तक पहुँच सकता है। विशेष बात यह है, कि इसकी खेती करने पर विभिन्न राज्यों में सरकार के स्तर से प्रोत्साहन धनराशि भी मिलती है। अब ऐसी स्थिति में हम यह कह सकते हैं, कि काले चावल की खेती करना किसानों के लिए काफी लाभदायक रहेगा।